प्रभु कृपा से साधिका विदुषी जी के श्री मुख से होने वाली कथा का मुख्य उद्देश्य है, दुनियाभर में सनातन परंपरा का प्रचार-प्रसार करना एवं समग्र लोकाचार, सार्वभौमिक शांति, सत्य, प्रेम और करुणा का संदेश फैलाना है…।
साधिका विदुषी जी योग और ध्यान को दूसरो को सरलता समझाती हैं
- योग -> जोडना , जो जिस क्षेत्र का है उसी के अनुरूप समझाना जैसे किसान , गरीब , रोगी , विद्यार्थी
-> क्षुद्रता को महानता से जोड़ना योग
-> कथनी को करनी मे लाना
-> आभामंडल में बढोतरी
- ध्यान -> सजगता
-> जो भी हमारा लक्ष्य है उसके प्रति Awareness बढाना ही ध्यान है
-> अपनी कमियों को बारीकी से निकालना
-> समझदारी बढाना , concentration बढाना
साधिका विदुषी जी हर किसी को व्यक्ति विशेष के अनुरूप ही योग व ध्यान बताती हैं जो ज्ञान की शुद्धतम अवस्था, आत्म ज्ञान, आत्म अनुभव को प्राप्त करता है।
साधिका विदुषी जी का एक बहुत ही उत्कृष्ट व्यक्तित्व हैं जो गरीब, बेसहारा और अनाथ बच्चों की सेवा करने में समर्पित हैं। उन्होंने अपने समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में प्रयत्नरत् है, उनका मुख्य लक्ष्य है कि समाज के हर व्यक्ति को उनके अधिकार और सम्मान का आनंद लेना चाहिए, इन्हें समर्पण और सेवा के प्रति गहरी लगाव है, साधिका विदुषी का कहना है कि मानवीय सेवा से समाज में बड़ा परिवर्तन आता है।
साधिका विदुषी जी, करुणा के प्रतिमूर्ति हैं, जो गरीब, बेसहारा और अनाथ बच्चों की सेवा में अपना पूरा जीवन समर्पित किया है। उन्होंने एक मानवीय संगठन शुरू किया है जो उन बच्चों को शिक्षा, आहार, स्वास्थ्य सेवाएं, और प्यार प्रदान करता है जो समाज के सबसे निराधार वर्ग से संबंधित हैं।
ऐसे प्रयासों से एक नया आश्रय और एक नया जीवन मिलता है।
साधिका विदुषी जी का समर्पण और सेवाभाव एक प्रेरणास्त्रोत है जो हमें सिखाता है कि अपने समाज के लिए कैसे महत्वपूर्ण योगदान दिया जा सकता है। उनकी सेवाओं के माध्यम से, वे एक उदाहरण स्थापित करती हैं कि हम सभी किसी के लिए कुछ कर सकते हैं और समृद्ध समाज की दिशा में साथ मिलकर चल सकते हैं।.....
हमारे देश में गाय को माता की तरह पूजा जाता है और इसका मान दुनियाभर के हिन्दू करे इसके लिए साधिका विदुषी जी ने नारा दिया है ”
“भूखी प्यासी गाय करे करुणामयी पुकार, ये मानव कर मेरी सेवा और ले ले मंगल दुआएं हज़ार”
साधिका विदुषी जी का मानना है कि अगर आप एक गाय नहीं भी रख सकते हैं तो अगर आपके आसपास कोई गरीब गाय पाल रहा है तो आप हर महीने उसे ही कुछ धनराशि दे दें ताकि वह गरीब गाय को भरण – पोषण कर सके और उस गाय से जो दूध हो उससे अपने परिवार का भरण – पोषण कर पाएगा।
दुनियाभर में इन दिनों पर्यावरण की रक्षा के लिए कई जरुरी कदम उठाए जा रहे हैं। यहां तक की कोरोना के समय देश में ऑक्सीजन को लेकर जो त्रासदी मची उसे भी झेला। पर्यावरण में ऑक्सीजन रहे उसके लिए पेड़ों का संरक्षण जरुरी है। तभी तो साधिका जी ने पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लिया और पेड़ पाैधे लगाने का फैसला किया। पेड़-पौधों का मानव जीवन में बड़ा महत्व है। ये हमें न सिर्फ ऑक्सीजन देते हैं। बल्कि तमाम प्रकार के फल-फूल, जड़ी बूटियां और लकड़ियां आदि भी देते हैं। घर के आसपास पौधरोपण करने से गर्मी, भू क्षरण, धूल आदि की समस्या से बच सकते हैं।
आइए आप भी पूज्य साधिका विदुषी जी के संकल्पों को पूरा करने में उनके सहभागी बनें और ताकि मानवता जीवित रहें और सनातन धर्म की जय जयकार होती रहे।
साधिका विदुषी जी देश के लिए एक अद्भुत बच्चों के जन्म संस्कार की एक गहन और समय-सम्मानित अभ्यास कराती हैं, जो माँ के गर्भ में अजन्मे बच्चे के पालन-पोषण और शिक्षा पर केंद्रित है। यह प्रसवपूर्व देखभाल के लिए एक समग्र दृष्टिकोण है जो बच्चे के विकास के लिए शारीरिक और भावनात्मक दोनों तरह से एक आदर्श वातावरण बनाने के महत्व पर जोर देता है।
मनुष्य की यह मनीषा होती है की अगली पीढी उससे बेहतर आये, कम से कम उसके जैसी तो हो ही । इस के आयोजन का सर्वश्रेष्ठ काल गर्भ का काल है क्यों की न्युरोन्स (Neurons) गर्भकाल में एक बार बनते है । फिर जीवन में कभी नहीं बनते ।कई प्रकार की बीमारी आये तो उसे समाप्त करना कठिन होता है, यह गर्भकाल में किसी भी आधुनिक विज्ञान भी कहता है। इसलिए जो संतान आनेवाला है वह स्वस्थ हो, सुंदर हो इसलिए गर्भ विज्ञान को समझने की तथा गर्भ संस्कार को क्रियान्वम करने की बहुत आवश्यकता होती है ।- – दिव्य आत्मा अततरण का जो प्रयोग है वह मन-बुद्धि-चेतना के स्टार का है । गर्भ विज्ञान का मुख्य प्रयोजन तो दिव्य आत्मा अवतरण अर्थात् दिव्य संतति की प्राप्ति का है । परंतु उसका व्यवहारिक प्रयोजन स्वस्थ, सुंदर, क्रियाशील संतति का सर्जन है ।
आज के समाज में सभी माता-पिता अपनी संतान को श्रेष्ठ बनाना चाहते हैं। उसे हर प्रकार से निपुण, हर ओर से सुरक्षित व स्वस्थ बनाना चाहते हैं। उसके लिए उसके जन्म से लेकर लगभग पूरे जीवन प्रयास करते हैं। उसके लिए अच्छे से अच्छा भोजन उपलब्ध कराकर, उसे आधुनिक युग की श्रेष्ठतम (और अधिकतर सबसे मूल्यवान) शिक्षा देकर, उसे विभिन्न तरह के खेल, कलाएं आदि सिखाकर सभी माता-पिता की अपेक्षा होती है कि वह पूर्णतया आत्मनिर्भर हो, जीवन में सफल व स्वस्थ हो। सब अपनी संतति को समर्थ बनाना चाहेंगे, जो स्वतंत्र हो, समाज को कुछ दे पाए या ऐसी जो जीवन भर निर्भर (dependent) हो, किसी और की बुद्धि से चले और परतंत्र हो ? यदि हम शरीर के स्तर पर, मन के स्तर पर, चेतना के स्तर पर – स्वतंत्र व समर्थ संतति चाहते हैं तो गर्भ विज्ञान की आवश्यकता है। मनुष्य को जीवन में जो भी रोग होते हैं, उनमें से ७०% रोगों की संभावना गर्भ में ही बन जाती है। पूरे जीवन की रूपरेखा (blueprint) गर्भ में बन जाती है। उस समय पंचकोश की जैसी mapping करेंगे, जैसा उसका ध्यान रखेंगे, वैसे ही उनका विकास होगा। संतान का स्वास्थ्य उस पर आधारित रहेगा। इसकी आज आवश्यकता है क्योंकि बच्चों के स्वास्थ्य का, उनकी रोग प्रतिरोधक शक्ति का, दिन-प्रतिदिन पतन हो रहा है, जहाँ उन्हें अच्छे स्वास्थ्य की आवश्यकता है, आत्मबल बढ़ाने की आवश्यकता है। इसलिए गर्भ विज्ञान को जानना व उसके कार्य आवश्यक हैं। जैसे, जब कोई बड़ा, कई मंजिल का भवन बनता है तो उसकी नींव को दृढ़ करने पर ध्यान दिया जाता है, उसी तरह गर्भ मनुष्य के जीवन की नींव है। उसे जितना दृढ़, जितना मज़बूत बनाएंगे, आने वाली संतति, पीढ़ियाँ उतनी ही दृढ़ होंगी। इसलिए बच्चों के स्वास्थ्य पर सबसे बाद प्रभाव गर्भ का होता है।