काशी वाराणसी में स्थित “शाश्वत कल्प कुंज साधना केंद्र”, जो आप की सभी समस्या हेतु सेवा के लिए तत्पर है अशांति, तनाव, सभी रोगों से निजात, और आपके अंदर एकाग्रता, शांति खुशी, आनंद, पवित्रता, दिव्यता से भरपूर जीवन शाश्वत कल्प कुंज केन्द्र से साधिका विदुषी जी से आपको प्राप्त होगा,ये काशी ऐसे भी देश विदेश में प्रसिद्ध है और कई तपस्वियों ज्ञानियों की दिव्य भूमि है काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित सबसे प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों में से एक है।
शाश्वत कल्प कुंज, साधिका विदुषी के सभी कार्यकर्म की जानकारी
हासिल करने के लिए इस केंद्र के कॉन्टेक्ट नंबर पर बात करके भी हासिल कर सकते हैं।
शाश्वत कल्प कुंज के कॉन्टेक्ट नंबर है – 9519367784
जय भोले नाथ …जय महाकाल….
कण कण में नारायण जन जन में श्रीराम प्राणों में माँ जानकी मन में बसे काशी धाम….
मानव कल्याण और जनसेवा की परंपरा को आगे बढ़ाने और भक्तों का कष्ट हरने भगवान खुद इस धरती पर नहीं विराजते बल्कि अपने किसी दूत को भेजते हैं। जब प्रभु की असीम कृपा बरसती है तो वही साधक संकल्पित हो समाज के कष्टों को दूर करने के लिए सभी सुखों को त्याग कर आगे आता है ये गुरु कृपा की हीं देंन है….
साधिका विदुषी जी गुरु कृपा के आशीर्वाद से काशी वाराणसी शाश्वत कल्प कुंज केन्द्र से सभी श्रधालुओं, साधकों, भक्तों को श्रीमद् भागवत कथा, साधना, ध्यान, योग, प्राणायाम आपकी सभी मानसिक शारीरिक स्वस्थता को परिपुण रूप से सेवा देने में साधिका विदुषी जी तत्पर रहतीं हैं, उनकी दिव्यवाणी का श्रवण और उनकी हर तरह की साधक के रुचि अनुसार सरल साध्य साधना का सुनहरा अवसर साधक प्रदान करते रहते हैं ।
काशी वाराणसी के दिव्य भूमि में हीं इनका जन्म स्थान रहा, इन्होंने अपने माता पिता के दिव्य आध्यात्मिक संस्कार के प्रभाव के कारण और गुरुदेव के असीम कृपा करुणा के कारण हीं परम पूज्य गुरुदेव युग दृष्टा, तपोनिष्ट, वेद मूर्ति, श्रीराम शर्मा आचार्य से 10 वर्ष के उम्र में हीं दीक्षा ग्रहण की पिता का नाम बृजनंदन और माता का नाम नगीना देवी परिवार से जन्मे आज समाज सेवा के लिए संकल्पित हैं शिक्षा भी काशी जैसे दिव्य भूमि से हीं रहा अपनी तप साधना से पहले उन्होंने अपने को तपाया जागृत हो समाज को जगाने का संक्लप लिया ।
साधिका विदुषी को अपने गुरु का सानिध्य प्राप्त हुआ और गुरु के आशिर्वाद और आदेश से अपने गुरु के ज्ञान को जन जन में फैलाने की वीणा उठायीं।
जनकल्याण और समाज कल्याण के कार्यों के क्रम में जिस तरह से मानव जाति का कल्याण होता आया है, इसके लिए युगों युगों तक गुरुदेव के संकल्प और उनकी कीर्ति याद रखी जाएगी। अपने लिए न जी कर दूसरों के लिए जीये, दूसरों के लिए कुछ करने के संकल्प के साथ अपना पूरा समय मानवता की सेवा में दे, ऐसे महापुरुष संत को बारम बार नमन…
साधिका विदुषी ने अपने संकल्पों से समाज कल्याण और लोक कल्याण की एक सरल सहज रूप से काया कल्प हो जो आज के मानव समाज घिरा हुआ है,आत्म ज्ञान, आत्म अनुभव, पंच कोश साधना, प्राण विद्या, श्रीमद् भागवत महापुराण कथा, साधक की पात्रता अनुसार सरल सहज रूप से उनकी आत्म परिस्कार, प्रखर प्रज्ञवान बनना साथ में गरीब और बेसहारा बेटियों का विवाह, पर्यावरण संरक्षण, गौरक्षा और बेसहारा बच्चों के लिए मदद….साधिका विदुषी जी के इन नेक संकल्पों में अब देश-विदेश के श्रद्धालु जुड़ते जा रहे हैं।
आप भी साधिका विदुषी के संकल्पों से जुड़ें और सनातन धर्म की रक्षा एवं मानव सेवा में सहयोग कर पूण्य के भागी बनें….
शाश्वत कल्प कुंज सेवा संकल्पों में अपना योगदान करने के लिए ,QR के माध्यम से सहयोग कर सकते हैं।.
प्रभु कृपा से साधिका विदुषी जी के श्री मुख से होने वाली कथा का मुख्य उद्देश्य है, दुनियाभर में सनातन परंपरा का प्रचार-प्रसार करना एवं समग्र लोकाचार, सार्वभौमिक शांति, सत्य, प्रेम और करुणा का संदेश फैलाना है…।
हम सभी के – 5 शरीर है , पांचों का भोजन अलग अलग है, साधिका विदुषी जी आपके इन
पांचों शरीर के बारे में, और जीवन के हर क्षेत्र में आपके कार्य को उच्च स्तरीय कार्य कैसे करें, प्रखर प्रज्ञवान कैसे बने पूरी की पूरी आपके जीवन के काया कल्प कर देने का संक्लप रखती हैं….जैसे
(1) अन्नमय – सत रज तम वाला अन्न physical Body के लिए
(2) प्राणमय – साहसिक / रचनात्मक कार्य / प्राणायाम
(3)मनोमय – Positive Thought
(4) विज्ञानमय – स्नेह , प्रेम आत्मियता
(5) आनंदमय – अखंडानन्द
अपने शरीर छोड़ने तक उसे श्रेष्ठ बनाए , पांचों कोशों का विकास करते रहना , संस्कारित करना होता है , उसे महामानव , देवमानव , अतिमानव बनाने के लिए संस्कारित किया जाता है, अनगढ को सुगढ बनाने की क्रिया ही संस्कार है, साधिका विदुषी जी के ऐसे समाज कल्याण के लिए जो संकल्प हैं, उसके लिए आप सभी साधक भक्त सादर आमंत्रित हैं…..
साधिका विदुषी जी योग और ध्यान को दूसरो को सरलता समझाती हैं - योग -> जोडना , जो जिस क्षेत्र का है उसी के अनुरूप समझाना जैसे किसान , गरीब , रोगी , विद्यार्थी -> क्षुद्रता को महानता से जोड़ना योग -> कथनी को करनी मे लाना -> आभामंडल में बढोतरी - ध्यान -> सजगता -> जो भी हमारा लक्ष्य है उसके प्रति Awareness बढाना ही ध्यान है -> अपनी कमियों को बारीकी से निकालना -> समझदारी बढाना , concentration बढाना साधिका विदुषी जी हर किसी को व्यक्ति विशेष के अनुरूप ही योग व ध्यान बताती हैं जो ज्ञान की शुद्धतम अवस्था, आत्म ज्ञान, आत्म अनुभव को प्राप्त करता है।
साधिका विदुषी जी अपने श्रीमुख से
आपके जीवन से जुड़ी सभी दुख सुख किसे कहते है ?..और आप सुख से क्या समझते है दुख से क्या समझते हैं आप के अनुसार सुख क्या है…
सुख की परिभाषा सभी की अपने स्तर पर ही होती है,
– जो आत्मिकी मे जी रहा है वो सुख को आत्मिकी के स्तर पर व्याख्या करेगा , हम विशुद्ध रूप से उपनिषद् है तो जो ईश्वर के साक्षात्कार से जो अनुभूति होती है उसे सुख कहते हैं जो भौतिकी मे जी रहा है वो धन, पद, प्रतिष्ठा को ही बडा सुख मानेगा जो काम वासना मे जी रहा है वह उसी को सबसे बड़ा सुख मानेगा – लम्पट, विषय / भोगो मे लिप्त रहता है, एक बार में विषय/भोग छुडवा दे तो मर जाएगा , पहले उसमें हीन भावना समाप्त करे फिर एक एक करके उसकी बुरी आदते छुड़वाई जा सकती है, जैसे नशे मे लिप्त व्यक्ति को नशा न करने के फायदे व इसे कितनी आसानी से छोड़ा जा सकता है, यह ये सभी दुख सुख से बाहर निकल जाने का एक नया मार्गदर्शन मिल जाने का सौभाग्य प्राप्त होगा सभी निष्ठा श्रद्धालुओं का होगा।
साधिका विदुषी जी देश के लिए एक अद्भुत बच्चों के जन्म संस्कार की एक गहन और समय-सम्मानित अभ्यास कराती हैं, जो माँ के गर्भ में अजन्मे बच्चे के पालन-पोषण और शिक्षा पर केंद्रित है। यह प्रसवपूर्व देखभाल के लिए एक समग्र दृष्टिकोण है जो बच्चे के विकास के लिए शारीरिक और भावनात्मक दोनों तरह से एक आदर्श वातावरण बनाने के महत्व पर जोर देता है।
मनुष्य की यह मनीषा होती है की अगली पीढी उससे बेहतर आये, कम से कम उसके जैसी तो हो ही । इस के आयोजन का सर्वश्रेष्ठ काल गर्भ का काल है क्यों की न्युरोन्स (Neurons) गर्भकाल में एक बार बनते है । फिर जीवन में कभी नहीं बनते ।कई प्रकार की बीमारी आये तो उसे समाप्त करना कठिन होता है, यह गर्भकाल में किसी भी आधुनिक विज्ञान भी कहता है। इसलिए जो संतान आनेवाला है वह स्वस्थ हो, सुंदर हो इसलिए गर्भ विज्ञान को समझने की तथा गर्भ संस्कार को क्रियान्वम करने की बहुत आवश्यकता होती है ।- – दिव्य आत्मा अततरण का जो प्रयोग है वह मन-बुद्धि-चेतना के स्टार का है । गर्भ विज्ञान का मुख्य प्रयोजन तो दिव्य आत्मा अवतरण अर्थात् दिव्य संतति की प्राप्ति का है । परंतु उसका व्यवहारिक प्रयोजन स्वस्थ, सुंदर, क्रियाशील संतति का सर्जन है ।
आज के समाज में सभी माता-पिता अपनी संतान को श्रेष्ठ बनाना चाहते हैं। उसे हर प्रकार से निपुण, हर ओर से सुरक्षित व स्वस्थ बनाना चाहते हैं। उसके लिए उसके जन्म से लेकर लगभग पूरे जीवन प्रयास करते हैं। उसके लिए अच्छे से अच्छा भोजन उपलब्ध कराकर, उसे आधुनिक युग की श्रेष्ठतम (और अधिकतर सबसे मूल्यवान) शिक्षा देकर, उसे विभिन्न तरह के खेल, कलाएं आदि सिखाकर सभी माता-पिता की अपेक्षा होती है कि वह पूर्णतया आत्मनिर्भर हो, जीवन में सफल व स्वस्थ हो। सब अपनी संतति को समर्थ बनाना चाहेंगे, जो स्वतंत्र हो, समाज को कुछ दे पाए या ऐसी जो जीवन भर निर्भर (dependent) हो, किसी और की बुद्धि से चले और परतंत्र हो ? यदि हम शरीर के स्तर पर, मन के स्तर पर, चेतना के स्तर पर – स्वतंत्र व समर्थ संतति चाहते हैं तो गर्भ विज्ञान की आवश्यकता है। मनुष्य को जीवन में जो भी रोग होते हैं, उनमें से ७०% रोगों की संभावना गर्भ में ही बन जाती है। पूरे जीवन की रूपरेखा (blueprint) गर्भ में बन जाती है। उस समय पंचकोश की जैसी mapping करेंगे, जैसा उसका ध्यान रखेंगे, वैसे ही उनका विकास होगा। संतान का स्वास्थ्य उस पर आधारित रहेगा। इसकी आज आवश्यकता है क्योंकि बच्चों के स्वास्थ्य का, उनकी रोग प्रतिरोधक शक्ति का, दिन-प्रतिदिन पतन हो रहा है, जहाँ उन्हें अच्छे स्वास्थ्य की आवश्यकता है, आत्मबल बढ़ाने की आवश्यकता है। इसलिए गर्भ विज्ञान को जानना व उसके कार्य आवश्यक हैं। जैसे, जब कोई बड़ा, कई मंजिल का भवन बनता है तो उसकी नींव को दृढ़ करने पर ध्यान दिया जाता है, उसी तरह गर्भ मनुष्य के जीवन की नींव है। उसे जितना दृढ़, जितना मज़बूत बनाएंगे, आने वाली संतति, पीढ़ियाँ उतनी ही दृढ़ होंगी। इसलिए बच्चों के स्वास्थ्य पर सबसे बाद प्रभाव गर्भ का होता है।
हमारे देश में गाय को माता की तरह पूजा जाता है और इसका मान दुनियाभर के हिन्दू करे इसके लिए साधिका विदुषी जी ने नारा दिया है ” “भूखी प्यासी गाय करे करुणामयी पुकार, ये मानव कर मेरी सेवा और ले ले मंगल दुआएं हज़ार” साधिका विदुषी जी का मानना है कि अगर आप एक गाय नहीं भी रख सकते हैं तो अगर आपके आसपास कोई गरीब गाय पाल रहा है तो आप हर महीने उसे ही कुछ धनराशि दे दें ताकि वह गरीब गाय को भरण – पोषण कर सके और उस गाय से जो दूध हो उससे अपने परिवार का भरण – पोषण कर पाएगा।
साधिका विदुषी जी का एक बहुत ही उत्कृष्ट व्यक्तित्व हैं जो गरीब, बेसहारा और अनाथ बच्चों की सेवा करने में समर्पित हैं। उन्होंने अपने समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में प्रयत्नरत् है, उनका मुख्य लक्ष्य है कि समाज के हर व्यक्ति को उनके अधिकार और सम्मान का आनंद लेना चाहिए, इन्हें समर्पण और सेवा के प्रति गहरी लगाव है, साधिका विदुषी का कहना है कि मानवीय सेवा से समाज में बड़ा परिवर्तन आता है। साधिका विदुषी जी, करुणा के प्रतिमूर्ति हैं, जो गरीब, बेसहारा और अनाथ बच्चों की सेवा में अपना पूरा जीवन समर्पित किया है। उन्होंने एक मानवीय संगठन शुरू किया है जो उन बच्चों को शिक्षा, आहार, स्वास्थ्य सेवाएं, और प्यार प्रदान करता है जो समाज के सबसे निराधार वर्ग से संबंधित हैं। ऐसे प्रयासों से एक नया आश्रय और एक नया जीवन मिलता है। साधिका विदुषी जी का समर्पण और सेवाभाव एक प्रेरणास्त्रोत है जो हमें सिखाता है कि अपने समाज के लिए कैसे महत्वपूर्ण योगदान दिया जा सकता है। उनकी सेवाओं के माध्यम से, वे एक उदाहरण स्थापित करती हैं कि हम सभी किसी के लिए कुछ कर सकते हैं और समृद्ध समाज की दिशा में साथ मिलकर चल सकते हैं।.....
दुनियाभर में इन दिनों पर्यावरण की रक्षा के लिए कई जरुरी कदम उठाए जा रहे हैं। यहां तक की कोरोना के समय देश में ऑक्सीजन को लेकर जो त्रासदी मची उसे भी झेला। पर्यावरण में ऑक्सीजन रहे उसके लिए पेड़ों का संरक्षण जरुरी है। तभी तो साधिका जी ने पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लिया और पेड़ पाैधे लगाने का फैसला किया। पेड़-पौधों का मानव जीवन में बड़ा महत्व है। ये हमें न सिर्फ ऑक्सीजन देते हैं। बल्कि तमाम प्रकार के फल-फूल, जड़ी बूटियां और लकड़ियां आदि भी देते हैं। घर के आसपास पौधरोपण करने से गर्मी, भू क्षरण, धूल आदि की समस्या से बच सकते हैं।
आइए आप भी पूज्य साधिका विदुषी जी के संकल्पों को पूरा करने में उनके सहभागी बनें और ताकि मानवता जीवित रहें और सनातन धर्म की जय जयकार होती रहे।